



बाबा न्यूज
आगरा। धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में कई संत श्रद्धालुओं के बीच लोकप्रिय हैं, इन्हीं में कथा सुनाने की विशिष्ट शैली से अलग पहचान बना चुके पूज्य पं. विजय शंकर मेहता जी महाराज भी हैं। जो आगरा प्रवास में श्री हरि सत्संग समिति द्वारा आरबीएस कॉलेज सभागार में वनवासियों के कल्याण के लिए आयोजित श्री हनुमत त्रिवेणी कथा में व्यासपीठ से तीन दिन श्रद्धालुओं को जीवन जीने की राह दिखा रहे थे। आगरा से विदा होने से पूर्व प्रवीण सिंघल के भरतपुर हाउस स्थित आवास पर मीडिया से बातचीत की।
प्रश्न : इस वक्त भारत को विकसित देश और विश्वगुरू बनाने का आह्वान हो रहा है, क्या यह संभव है?
उत्तर: विश्वगुरु का अर्थ है आपके पास कोई न कोई ऐसा विशिष्ट ज्ञान हो जो अन्य किसी के पास नहीं हो। साथ ही जिसका संबंध सीधे इंसानी जीवन को बेहतर बनाने से हो। लीडर तो अमेरिका ही रहेगा, लेकिन भारत विश्वगुरू पुन: बनेगा, क्योंकि भारत के पास योग, आयुर्वेद, ज्योतिष आदि प्राच्य विधाओं की विरासत है, जिनका मुरीद सारा जमाना है।
प्रश्न: कथा के बीच-बीच में आप थोड़ा तो मुस्कुराइए का आह्वान करते हैं, कोई खास वजह?
उत्तर: देखिए हम लोग ईश्वर ने मनुष्य बनाए हैं। पशु और मनुष्य में बहुत बड़ा फर्क होता है। मनुष्य शरीर, मन और आत्मा से बना है। मनुष्य अपनी आत्मा को स्पर्श कर सकता है, पशु नहीं। मनुष्य को पशु से अलग होने का अहसास होना ही चाहिए, ये तभी संभव है जब तनाव मुक्त रहें, मुस्कुराते रहें। इस जीवंतता को बनाए रखने का आहवान करता हूं।
प्रश्न: आपकी कथा कहने की शैली की क्या विशेषता है और क्या मूल उद्देश्य है?
उत्तर: कथा तो बस बहाना है, मुझे तो परिवारों को बचाना है! मैं कथा कहता हूं तो परिवार बचाने और मौलिक स्वरूप में बनाए रखने का आह्वान करता हूं। आने वाले वक्त में देश सबसे बड़ी जिस समस्या से जूझेगा, वह है पारिवारिक विघटन। पारिवारिक मूल्यों में अवमूल्यन हो रहा है, यही पारिवारिक-सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा। पति-पत्नी के बीच सामंजस्य टूट रहा है, जिंदगी में किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करनी होती है। याद रखें परिवारों की टूटन का नुकसान उनके अपने बच्चों को उठाना पड़ता है।
प्रश्न: आप बुजुर्गों की उपेक्षा को लेकर कथा में विशेष उल्लेख करते हैं, इसका क्या समाधान है?
उत्तर: बुजुर्गों को जिस तरीके से उपेक्षित किया जा रहा है, वह निश्चित रूप से समाज को दिशाहीन बना रहा है, जिसके पास जिंदगी का बहुमूल्य तजुर्बा है, उसको ही दरकिनार करना दुखद है। बुजुर्ग परिवार में साए की तरह होते हैं, वृद्धावस्था सबकी आनी है, जिन्होंने आपको पैरों पर खड़े होने लायक बनाया, इनको किसी लायक नहीं समझ रहे! अनुभव जिनके पास है, वो परिवार-समाज की ताकत हैं।