



संस्कृति विवि में कार्यशाला का किया गया आयोजन
विनोद अग्रवाल/ बाबा न्यूज
मथुरा। बासमती चावल के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए अच्छी कृषि पद्धतियों पर किसानों को प्रशिक्षित करने हेतु बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन, एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डवलपमें एथोरिटी ने संस्कृति विश्वविद्यालय के समन्वय से एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला में बासमती किसानों और हितधारकों को बासमती चावल के निर्यात में चुनौतियों और अवसरों के बारे में शिक्षित और अच्छी कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया । कार्यशाला में 225 किसानों ने भाग लिया।
महत्वपूर्ण कार्यशाला में मुख्य वक्ता पद्मश्री एवं इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. वीपी सिंह ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बासमती की खेती में आने वाली चुनौतियों और संभावनाओं पर विस्तार से किसानों को बताया।
संस्कृति सेंटर फॉर एप्लाइड पॉलिटिक्स के निदेशक डा. रजनीश त्यागी ने कहा कि इस कार्यशाला का मुख्या उद्देश किसानों को प्रशिक्षित कर बासमती की उपज को बढ़ाना है। बीईडीएफ के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. अनुपम दीक्षित ने किसानों को बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए फाउंडेशन की पहल और चल रहे प्रयासों के बारे में जानकारी दी। प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने प्रतिभागियों के साथ महत्वपूर्ण आँकड़ा साझा करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ने बासमती चावल के निर्यात में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, जिसका कुल निर्यात मूल्य चालू वर्ष में 38,524 करोड़ रुपये है।
कार्यशाला में जीबी नगर में कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के प्रतिनिधि डॉ. विपिन शर्मा, नवप्रवर्तक किसान सुधीर अग्रवाल ने बासमती चावल उत्पादन में अपने अनुभवों और सफलता की कहानियों को साझा किया।
संस्कृति विश्वविद्यालय के महानिदेशक प्रोफेसर (डॉ.) जेपी शर्मा ने बासमती चावल उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए निरंतर सीखने और ज्ञान साझा करने के महत्व पर जोर दिया। धन्यवाद ज्ञापन डीन स्कूल आॅफ एग्रीकल्चर डॉ. केके ने दिया।
संस्कृति यूनिवर्सिटी बिजनेस इनक्यूबेशन सेंटर के सीईओ अरुण कुमार त्यागी और प्रो. प्रबंधन के नोडल प्रशिक्षण संस्थान के प्रशिक्षण समन्वयक दाऊ दयाल शर्मा ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र सौंपे। संचालन संस्कृति ट्रेनिंग सेल की वरिष्ठ प्रबंधक अनुजा ने किया। कार्यशाला को सफल बनाने में डॉ. संजीव शर्मा, डॉ. कमल पांडे, डॉ. सतीश चंद, हितेंद्र, रोहित, राम प्रताप आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।